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नालागढ़ — प्रदेश में जैविक खेती को बढ़ावा देने के मकसद से हिमाचल सरकार ने प्रथम चरण में 21 हजार किसानों को जैविक कृषि के लिए पंजीकृत किया है। इसके साथ-साथ प्रदेश भर में 3,54000 वर्मी कंपोस्ट इकाइयां भी स्थापित की गई हैं। नालागढ़ उपमंडल में कृषि विभाग मियांपुर, गुरदासपुरा, छियाछी, डोली जैसे कई गांवों में किसानों को जैविक खेती को अपनाने को प्रेरित करने के लिए प्राथमिक स्तर पर कार्य कर रहा है। प्रदेश में खेती में रसायनों पर बढ़ती अव्यवस्थित निर्भरता से जहां मिट्टी अपना उपजाऊपन खो रही है, वहीं वातावरण भी प्रदूषित हो रहा है। समय रहते इन परिस्थितियों से निपटने के लिए सरकार जैविक खेती को बढ़ावा दे रही है। जैविक खेती विश्व में सदियों से अपनाई जा रही पारंपरिक खेती का वैज्ञानिक ढंग से विकसित प्रारूप है। हिमाचल में भी अब जैविक खेती की विभिन्न पद्धतियों जीव व कीट प्रबंधन, खाद्यान्न फसलों, सब्जियों और सेब की जैविक विधि द्वारा उत्पादन तकनीक को अपनाया जा रहा है। जैविक खेती में बाहरी उत्पादों का प्रयोग बहुत कम किया जाता है। इसमें रासायनिक खादों कीटनाशकों का प्रयोग बिलकुल नहीं किया जाता है। गोबर की खाद फसलों के अवशेष से जैविक खाद बनाने की कई विधियां वैज्ञानिकों द्वारा विकसित की गई हैं। इस तरह की खेती में कीटों व बीमारियों से फसलों को बचाने के लिए हमारी वनस्पति में मौजूद प्राकृतिक कीटनाशकों का प्रयोग किया जाता है। जैसे नीम, बिच्छू, बूटी, नीला फुलणू, दरेक आदि को पानी या गौ मूत्र के साथ मिलाकर छिड़काव से कीड़ों को नियंत्रित किया जाता है। विषयवाद विशेषज्ञ कृषि विभाग नालागढ़ देशराज ठाकुर का कहना है कि नालागढ़ उपमंडल में जैविक खेती के प्रति किसानों का रुझान उत्साहजनक है। उन्होंने बताया कि उपमंडल के मियांपुर, गुरदासपुरा, छियाछी, डोली जैसे गांवों में किसानों को जैविक खेती से जोड़ने के लिए प्राथमिक स्तर पर प्रयास किए जा रहे हैं। भविष्य में कृषि विभाग अन्य गांवों में भी अपनी मुहिम चलाएगा। स्वस्थ जीवन व संुदर पर्यावरण के लिए जैविक खेती एक उम्दा विकल्प है तथा उम्मीद है भविष्य में और किसान भी इसे बड़े स्तर पर अपनाएंगे।
नालागढ़ — प्रदेश में जैविक खेती को बढ़ावा देने के मकसद से हिमाचल सरकार ने प्रथम चरण में 21 हजार किसानों को जैविक कृषि के लिए पंजीकृत किया है। इसके साथ-साथ प्रदेश भर में 3,54000 वर्मी कंपोस्ट इकाइयां भी स्थापित की गई हैं। नालागढ़ उपमंडल में कृषि विभाग मियांपुर, गुरदासपुरा, छियाछी, डोली जैसे कई गांवों में किसानों को जैविक खेती को अपनाने को प्रेरित करने के लिए प्राथमिक स्तर पर कार्य कर रहा है। प्रदेश में खेती में रसायनों पर बढ़ती अव्यवस्थित निर्भरता से जहां मिट्टी अपना उपजाऊपन खो रही है, वहीं वातावरण भी प्रदूषित हो रहा है। समय रहते इन परिस्थितियों से निपटने के लिए सरकार जैविक खेती को बढ़ावा दे रही है। जैविक खेती विश्व में सदियों से अपनाई जा रही पारंपरिक खेती का वैज्ञानिक ढंग से विकसित प्रारूप है। हिमाचल में भी अब जैविक खेती की विभिन्न पद्धतियों जीव व कीट प्रबंधन, खाद्यान्न फसलों, सब्जियों और सेब की जैविक विधि द्वारा उत्पादन तकनीक को अपनाया जा रहा है। जैविक खेती में बाहरी उत्पादों का प्रयोग बहुत कम किया जाता है। इसमें रासायनिक खादों कीटनाशकों का प्रयोग बिलकुल नहीं किया जाता है। गोबर की खाद फसलों के अवशेष से जैविक खाद बनाने की कई विधियां वैज्ञानिकों द्वारा विकसित की गई हैं। इस तरह की खेती में कीटों व बीमारियों से फसलों को बचाने के लिए हमारी वनस्पति में मौजूद प्राकृतिक कीटनाशकों का प्रयोग किया जाता है। जैसे नीम, बिच्छू, बूटी, नीला फुलणू, दरेक आदि को पानी या गौ मूत्र के साथ मिलाकर छिड़काव से कीड़ों को नियंत्रित किया जाता है। विषयवाद विशेषज्ञ कृषि विभाग नालागढ़ देशराज ठाकुर का कहना है कि नालागढ़ उपमंडल में जैविक खेती के प्रति किसानों का रुझान उत्साहजनक है। उन्होंने बताया कि उपमंडल के मियांपुर, गुरदासपुरा, छियाछी, डोली जैसे गांवों में किसानों को जैविक खेती से जोड़ने के लिए प्राथमिक स्तर पर प्रयास किए जा रहे हैं। भविष्य में कृषि विभाग अन्य गांवों में भी अपनी मुहिम चलाएगा। स्वस्थ जीवन व संुदर पर्यावरण के लिए जैविक खेती एक उम्दा विकल्प है तथा उम्मीद है भविष्य में और किसान भी इसे बड़े स्तर पर अपनाएंगे।
April 27th, 2011
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